465 Viewsमंगरुआ के मौसी मुँहझौसी ! कतों मुँह खोल गइल। ढेरे कुछ नु बोल गइल। नाड़ा के बाति भाड़ा के बाति उजरकी कोठी आ कलफ लागल कुरता दूनों के तोल गइल। ढेरे कुछ नु बोल गइल। कहाँ, के खोलल टटोलल ! कहाँ कतना मोल भइल। ढेरे कुछ नु बोल गइल। आजु मेजबान फेरु बेजुबान घर घर घरनी के अदला-बदली तक टटोल गइल। ढेरे कुछ नु बोल गइल। कंकरीट के जंगल में लहलहात कैक्टस लेवरन अस साटल मुसुकी से परम्परा के सुनुगत बोरसी तक अचके झकोल गइल।…
Read MoreTag: जयशंकर प्रसाद द्विवेदी
कब्रिस्तान के बगल वाली लड़की
326 Viewsकब्रिस्तान के बगल वाली लड़की चुलबुली सी प्यारी सी खनकती हँसी के संग इधर – उधर तितलियों सी मंडराती सबको हंसाती , हंसती किलोलें भरती हंसिनी सी . वहां उसका होना रोज एक नयी कहानी की भूमिका गढ़ जाता है दे जाता है कथानक किसी उपन्यासकार को भावभूमि किसी कवि को. वो लड़की किसी दिन जब होती है उदास रुक जाता पत्तियों का हिलना – डुलना पक्षियों का कलरव लहरों का तरंगायन पास वाले तालाब में भी . कभी जब ओ लड़की रोती सुबह सारी पगडंडी…
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