525 Views सुबह सुबह निकले हैं घर से बारिश हो रही अमृत बूंदें बरसें झर झर से बारिश हो रही। गहरे बादल का वितान है अंबर में हर ओर कहीं नहीं दिखता सूरज का कौन-सा अपना छोर चल रहे रवि भी डर डर के बारिश हो रही। चक्षु-धरा हैं तृप्त हो रहे सुन जल-तरंग का राग विरही मन में धधक उठती है पुनीत प्रेम की आग फिर भी निकलेंगे जोड़े घर से बारिश हो रही। – केशव मोहन पाण्डेय
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प्रेम-वृक्ष
489 Views इस मौसम में जब कि सावनी फुहार लगना चाहिए तीखी खिली धूप में भी मैं याद करता हूँ तुम्हें कि उन दिनों कैसे हम बचकर चलते थे बरसाती पानी की छपाक से और यह जानते हुए भी कि नहीं रुकेगी एक बूंद भी तुम्हारे दुपट्टे से फिर भी अच्छा लगता था एक साथ ओढ़ना। अब, जबकि सफेद हो गए हैं कनपट्टी के बाल चढ़ गया है आँखों पर दूर दृष्टि दोष का चश्मा कई छिद्र करवाने पड़े हैं बेल्ट के अंतिम छोर की ओर और एक लंबी साँस…
Read Moreसावन
491 Views ई सावन के झीसी जइसे केहू दाबत होखे परफ्यूम के सीसी आ करत होखे जुगत मँहकावे के धरती रानी के गतर-गतर। ई मातल बादर जइसे मखमल चादर ओढ़ले होखे धरती धानी धन बचावे के आ ई देख के कवनो रागिनी मचलत होखे गावे के गीत कवनो प्रेम के। जेठ के झनकल माटी तुरि के सगरो परिपाटी तैयार होखे मिलन के बेकल आसमान से दूर करे ला बरिसन के बिरह व्यथा बनि के सद्यःस्नात। जब प्रकृति बा अइसन तैयार तब मनई काहें बइठे मन मारि? सावन में त धूर…
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