Description
इब्राहीम अश्क की ग़ज़लों का फ़न और मेयार उनके इस शेर में नुमायां है कि ‘बादशाहों को फ़क़ीरों का सलाम आया है। मैं भी शायर हूँ कि दिल छूने का फ़न रखता हूँ।’ दिल को छू लेने वाले और गंगोजमन की तहज़ीब में पले अश्क की शायरी की दुनिया अदब से लेकर फ़िल्मी सफ़र तक फैली है। दुर्भाग्य से वे कोरोना की त्रासदी में हमारे बीच नहीं रहे जब वे अपनी शोहरत की बुलंदियों पर थे। अच्छे शायर फ़कीरी में भी सत्ताधीशों की क़सीदेकारी से बचते हैं और अपनी आवाज़ को सबसे जुदा और निर्भय रखते हैं। ‘चित्त जेथा भय शून्य’ वाली ठसक के साथ जीता हुआ शायर ही कालजयी होता है, उसी का लिखा-पढ़ा सनद की तरह उद्धृत किया जाता है और वह शताब्दियों की यात्रा करता हुआ लोगों की याददाश्त और अदब के इतिहास में जीवित रहता है।
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