Description
ओम निश्चल के गीत और ग़ज़लों से गुज़रें तो वही करूणा के स्वर वहाँ भी मिलेंगे। उनकी आवाज़ भी ‘गीत-आवाज़’ है। वो ख़ूब लिखते हैं और वो ख़ूब गाते भी हैं। प्रेम भाव के अतिरिक्त, आमजन के दुख कष्ट, अभाव उनकी ग़ज़लों के स्वर बन जाते हैं– तुम ज़िंदगी की बंदगी से लेकर, जली हुई रोटी, बिखरी हुई रसोई और वापिस बारात लौटी का चेहरा-तक, उनकी ग़ज़ल रचनाओं का विस्तार है। वो शब्दों को प्रतीकों में ढालते हैं और प्रतीक, मुहावरा बनकर, ग़ज़ल के शेरों को, वैभव प्रदान करते हैं। वो हिंदी शब्दों को शेरों में ठूँसते नहीं, उनके लिए उपयुक्त जगह बनाते हैं। लगता है जैसे मिसरों के धागों में, उन्होंने शब्द पिरो दिए हों।
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