Description
भगत सिंह की प्रसिद्ध रचना ‘मैं नास्तिक क्यों हूँ’ उनकी विचारधारा और बौद्धिक गहराई का अद्भुत उदाहरण है। यह लेख उन्होंने जेल में रहते हुए 1930 में लिखा था। इसमें भगत सिंह ने अपने नास्तिक होने के कारणों को तार्किक और दार्शनिक ढंग से प्रस्तुत किया है। वे बताते हैं कि उनका नास्तिक होना किसी अहंकार या ईश्वर से द्वेष का परिणाम नहीं, बल्कि विज्ञान, तर्क और मानवतावाद पर आधारित एक सजग विचार है। उनके अनुसार मनुष्य को अपने कर्मों की जिम्मेदारी स्वयं लेनी चाहिए, न कि किसी अदृश्य शक्ति पर निर्भर रहना चाहिए। इस लेख में भगत सिंह ने आस्था और अंधविश्वास के बीच का अंतर स्पष्ट करते हुए यह दिखाया कि सच्चा क्रांतिकारी केवल सामाजिक नहीं, बल्कि वैचारिक रूप से भी स्वतंत्र होता है। ‘मैं नास्तिक क्यों हूँ’ आज भी स्वतंत्र चिंतन, विवेक और मानव-मूल्य आधारित जीवन दृष्टि का प्रेरणास्रोत है।






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