Description
हिंदी कविता के परिदृश्य में लीलाधर जगूड़ी एक ऐसे सशक्त कवि हैं जिन्होंने साठोत्तर कविता को नए अर्थ, नई संवेदना और भाषाई प्रयोगों की सजीवता से समृद्ध किया। धूमिल, केदारनाथ सिंह और मुक्तिबोध की परंपरा से प्रेरणा लेते हुए उन्होंने कविता को प्रश्नाकुलता, सामाजिक यथार्थ और राजनीतिक प्रहसन की चेतना से जोड़ा। उनके संग्रह शंखमुखी शिखरों पर, नाटक जारी है, भय भी शक्ति देता है और अनुभव के आकाश में चाँद जैसी कृतियाँ उनकी काव्ययात्रा के मील के पत्थर हैं। जगूड़ी ने भाषा को केवल अभिव्यक्ति का माध्यम नहीं, बल्कि अनुभव की खोज का उपकरण बनाया। वे शब्दों की रगड़ और गूँथन से नए अर्थ-आलोक पैदा करते हैं, जिससे उनकी कविता आधुनिक संवेदना की एक सजीव अभिव्यक्ति बन जाती है। समकालीन कविता में जहाँ विनोद कुमार शुक्ल की आत्मदर्शिता है, वहीं जगूड़ी की कविता समाज, समय और व्यवस्था के भीतर छिपे नाटक का बौद्धिक काव्यात्मक रूपांतरण प्रस्तुत करती है। हिंदी कविता के इस विलक्षण शिल्पी पर लिखी गई यह पुस्तक उनके बहुआयामी काव्य-लोक को समझने की एक सार्थक पहल है, जो शोध और अध्ययन के क्षेत्र में भी एक मूल्यवान संदर्भ सिद्ध होगी।
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