Description
अनामिका जी की कविताओं का संसार जीवन-जगत की हलचलों से बना है। उसमें गतियाँ हैं, ध्वनियाँ हैं, आवाज़ें हैं। आधी दुनिया के मसले उनकी कविताओं में सहज ही प्रवेश करने लगे थे। प्रांरभ से ही अनामिका की कविताओं में एक देशज तत्व विराजमान रहा है। एक बोलता-बतियाता हुआ स्त्रियों की दुनिया का समव्यथी संसार उनकी कविताओं में प्रकट होता है। जैसे बोल-बतकहियों की एक रील सी खुलती चलती है। परंपरा और आधुनिकता की पायदान पर क़दम टिकाए यह कवयित्री अपने कथ्य और अंदाज़ेबयाँ के लिए किसी वायवीय कौशल और कविता के पाश्चात्य ढाँचे का सहारा न लेकर अपनी सांस्कृतिक और भौगोलिक जड़ों को टटोलती है। इसीलिए उनके रचना संसार में रेणु की तरह उनका अंचल बोलता है, देश और काल बोलता है, स्त्रियों का समवेत स्वर बोलता है।
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