Description
शशिकला त्रिपाठी का काव्य-संग्रह ‘फूल तो खिलेंगे ही’ उनकी संवेदनशील सर्जनात्मक यात्रा का सशक्त दस्तावेज़ है। लेखन को वे मात्र रचनात्मक कर्म नहीं, बल्कि श्रमसाध्य साधना मानती हैं, जिसमें निरंतर संशोधन, परिमार्जन और आत्मसंतुष्टि की प्रक्रिया शामिल है। उनकी कविताएँ किसी आग्रह-दुराग्रह या विचारधारा की कट्टरता से नहीं, बल्कि स्वानुभूति और सहानुभूति की गहन संवेदना से उपजती हैं। अन्याय, विसंगतियाँ और मानवीय पीड़ा जब उनके मन को उद्विग्न करती है, तभी कविता उनके भीतर आकार लेती है। इस संग्रह की कविताओं में जीवन के विविध आयाम—व्यक्तिगत पीड़ा, सामाजिक यथार्थ, प्राकृतिक सौंदर्य और वैश्विक मानवीय सरोकार—सहज रूप से व्यक्त हुए हैं।
Reviews
There are no reviews yet.