Description
हिंदी ग़ज़ल के इलाके में रोज नई आमद हो रही है। हम ऐसा मानते हैं कि जो हमारे पूर्ववर्ती कवियों शायरों ने कह दिया, अब कोई क्या खाकर लिखेगा। लेकिन ऐसा नहीं है। साहित्य के नित नए अर्थवान पद-प्रत्ययों का निवेश हो रहा है, हिंदी ऐसी अभिव्यक्तियों से मालामाल हो रही है। उत्कर्ष अग्निहोत्री हिंदी शायरी की नई पौध है लेकिन अपने रुधिर और अस्थिमज्जा में ग़ज़ल की सम्यक् संवेदना लिए फिरते हैं। जिस कवि को उसके शैशव से शिवओम अंबर जैसे कवि का सान्निध्य और उनकी परवरिश मिली हो, उसकी प्रतिभा के स्फुल्लिंग दूर से ही चमकते दिखाई देते हैं। उत्कर्ष अग्निहोत्री में ऐसा ही औदात्य है जो हिंदी और हिंदवी के लफ़्ज़ों के बीच तत्सम की कलगी सजा कर अपने कुल गोत्र की बानगी देता है।
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