फागुन आय गइल

सर्वभाषा ट्रस्ट कविता फागुन आय गइल
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अमराई बउराइलि,कोइली कूंक सुनाय गइल

सरहज के मुसुकी का संगही फागुन आय गइल ।

 

बासंती आँखिन के निसा मनईन पर अस छवलस

अचके चलल पवन पुरवाई,अँचरा सभे उड़वलस

जीवा जंत लगै मद मातल, सलियो अगराय गइल

सरहज के मुसुकी का संगही फागुन आय गइल ।

 

जब पुरवइया हँस हँस के लागल खींचे अँचरा

नवहिन संगे पुरनकिन आँखि सोभे लागल कजरा

लइका त लइके हउवन अब बुढ़वो बउराय गइल

सरहज के मुसुकी का संगही फागुन आय गइल ।

 

पुआ के छन छन पायल सी हिय के लगल हिगरावै

कटहल के हिड़स उठल आ छिमियो लागल भावै

गोरिया अचके में अइसे ओढनी लहराय गइल

सरहज के मुसुकी का संगही फागुन आय गइल ।

 

पुरी कचौरी बोज़ा बजका लागल गीत सुनावै

खीर बखीर के संगे गुझिया नचि नचि के इतरावै

भउजी भौहन तीर चलल,संउसे देह छुवाय गइल ।

सरहज के मुसुकी का संगही फागुन आय गइल ।

 

  • डॉ शंकर मुनि राय
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