अबहिन ले बहुते निबहली ,
पिया हो! माथे क अँचरा जोगवलीं।
अँखियन में लेके दुनों कुल क पानी
कबहूँ जेठानी त कबों देवरानी
सासुजी क मेहना, ससुर क ओरहना
ननदो के नखरा उठवलीं।
पिया हो! माथे क अँचरा जोगवलीं।
चुपे चुपे रोवलीं, दरद पीर सहलीं
केहू से कुछहू न कहलीं
पिया हो! माथे क अँचरा जोगवलीं।
झकहूँ ना पवलीं, दुवारी के बहरा
गतरे गतर में लगल मोरा पहरा
नाक में नथुनी , गोड़े में गोड़हरा
गरवा में हँसुली पहिरलीं
पिया हो! माथे क अँचरा जोगवली।
मन में रहल कि सुरूज़ रूप देखती
भोर फूल बगिया में तितली निरेखती
उड़त चिरइयन संग उड़ले के सपना
मनवे में सजली संवरलीं
पिया हो! माथे क अँचरा जोगवली।
साँसते में ससिया रहल दिन रैना
बनके मो रहली पिजरवे क मैना
पिजरे में रहना पिजरवे मे उड़ना
पिजरे भर पंखिया पसरली
पिया हो! माथे क अँचरा जोगवलीं।
बिटिया जो होइहें त थरिया बजाइब
अँगने उछाहे क लछना लुटाइब
अब ना गुनब कवनों बन्हना बरजना
अबहिन ले बहुते निबहलीं
पिया हो! माथे क अँचरा जोगवलीं।
- डॉ कमलेश राय
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