अमराई बउराइलि,कोइली कूंक सुनाय गइल
सरहज के मुसुकी का संगही फागुन आय गइल ।
बासंती आँखिन के निसा मनईन पर अस छवलस
अचके चलल पवन पुरवाई,अँचरा सभे उड़वलस
जीवा जंत लगै मद मातल, सलियो अगराय गइल
सरहज के मुसुकी का संगही फागुन आय गइल ।
जब पुरवइया हँस हँस के लागल खींचे अँचरा
नवहिन संगे पुरनकिन आँखि सोभे लागल कजरा
लइका त लइके हउवन अब बुढ़वो बउराय गइल
सरहज के मुसुकी का संगही फागुन आय गइल ।
पुआ के छन छन पायल सी हिय के लगल हिगरावै
कटहल के हिड़स उठल आ छिमियो लागल भावै
गोरिया अचके में अइसे ओढनी लहराय गइल
सरहज के मुसुकी का संगही फागुन आय गइल ।
पुरी कचौरी बोज़ा बजका लागल गीत सुनावै
खीर बखीर के संगे गुझिया नचि नचि के इतरावै
भउजी भौहन तीर चलल,संउसे देह छुवाय गइल ।
सरहज के मुसुकी का संगही फागुन आय गइल ।
- डॉ शंकर मुनि राय