1
वक़्त अच्छा या बुरा है ये गुज़र जायेगा
जाते जाते ही मगर दिल भी बिखर जायेगा
उससे दीदार का वादा जो नहीं निभ पाया
उससे मिलने का मुहूरत ही गुज़र जाएगा
दोस्तों सर से अगर पानी नहीं उतरा तो
ज़िन्दगी जीने का उल्लास ही मर जाएगा
हमने ऐसे कभी हालात नहीं देखे थे
घर का जब मुखिया ही हालात से डर जायेगा
लग गई आग, बुझाने की मगर कौन कहे
देख करके भी बगल से वो गुज़र जाएगा
इंतख़ाबात के दिन जब भी कभी आएँगे
हाथ फैलाए वो गलियों में नज़र आएगा
इस सियासत ने बना रखा है सबको पागल
इसकी ज़द से जो नहीं निकला वो मर जाएगा।
जिनके हाथों में है पतवार वतन की साधो
उनको मालूम नहीं, मुल्क किधर जाएगा
2
मेरी ख़ातिर हर रास्ता जन्नत हो जाए
तुम्हारे शहर से मुझको जो मुहब्बत हो जाए
तुम्हें बिठा के जो अपनी ग़ज़ल सुनाऊँ मैं
तो कायनात ठहर जाए क़यामत हो जाए
कोई ख़्वाहिश न तमन्ना कोई रहे बाक़ी
तुम्हारे दिल पे अगर मेरी हुकूमत हो जाए
ये दिल भी जैसे मुहब्बत का धाम बन जाए
किसी फ़क़ीर कलंदर की इनायत हो जाए
हमें बसा लो इन आँखों की अपनी डिबिया में
इसी बहाने से रब की मुलाज़मत हो जाए
3
उदासियों में भी चेहरे पे रोशनी थी बहुत
वो मेरे साथ थी जब ख़ुश ये ज़िंदगी थी बहुत
क़रीब रह के भी सागर के मैं रहा प्यासा
रहा जो सहरा में तो कंठ में नमी थी बहुत
मैं ठाट बाट से रहता हूँ पर सुकून नहीं
कभी अभाव थे जीवन में पर ख़ुशी थी बहुत
वो शख़्स ख़ास था अंदाज़-ए-बयाँ में अपनी
तभी तलक ही कि जब उसमें सादगी थी बहुत
उसे समझ न सके हम तमाम बरसों में
पर आज लगता है कि उसमें ताज़गी थी बहुत
4
अभी तो यहाँ पर बड़ी सर्दियाँ हैं
हवाएँ हैं ऐसी कि ज्यों बरछियाँ हैं
न निकलो सनम सरबरहना सड़क पर
के नभ में कड़कती हुई बिजलियाँ हैं
ये बच्चे, ये बूढ़े, ये कोहरे की चादर
कि निस्तेज सूरज की सब बस्तियाँ हैं
अभी लेट कर घर में सोए रहो बस
निगाहों में मौसम की बेशर्मियाँ हैं
अभी तुम तो कमनीय टहनी हो कोई
नरम सी तुम्हारी अभी डालियाँ हैं
सुनो गर तुम्हें भी सुनाई पड़ेंगी
कहाँ से ये आती हुई सिसकियाँ हैं
खुली झोपड़ी है रजाई भी जर्जर
है बूढ़ा बदन अनसुनी अर्ज़ियाँ हैं
उठा ले उसे कोई ऐसे में आकर
कि पढ़ ले जो उसने लिखी चिट्ठियाँ हैं
5
मेहनत से तू मत शरम कर
कुछ धरम कर कुछ करम कर
मत काम की तू फ़िक्र कर
युग धरम कर युग धरम कर
यह सनातन की सुबह है
लहजा तू अपना नरम कर
कर कार सेवा तू अभी
चुपचाप अपना धरम कर
है आँच चूल्हे में अभी
रोटी तवे पर गरम कर
बदला तो लगता है जहां
दिखता नहीं, तू शरम कर
भगवान इक दिन आयेंगे
इसमें न किंचित भरम कर
6
मुहब्बत की गलियों से चल कर गए हैं
मगर दिल को मेरे वे छल कर गए हैं
अभी जो बरस कर गए हैं ये बादल
ये आँखों की डिबिया सजल कर गए हैं
चमकते रहे रात यादों के जुगनू
ये जीवन को धुल कर धवल कर गए हैं
वो मासूमियत याद आती है उनकी
जो हिरदय को सूखा कंवल कर गए हैं
कहाँ किस जहाँ में अकेले वे होंगे
जो जीवन को जैसे गरल कर गए हैं
मेरी शोख़ गुमसुम-सी ख़ामोशियों को
वो जीते जी जैसे ग़ज़ल कर गए हैं