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सुबह सुबह निकले हैं घर से
बारिश हो रही
अमृत बूंदें बरसें झर झर से
बारिश हो रही।
गहरे बादल का वितान है
अंबर में हर ओर
कहीं नहीं दिखता सूरज का
कौन-सा अपना छोर
चल रहे रवि भी डर डर के
बारिश हो रही।
चक्षु-धरा हैं तृप्त हो रहे
सुन जल-तरंग का राग
विरही मन में धधक उठती है
पुनीत प्रेम की आग
फिर भी निकलेंगे जोड़े घर से
बारिश हो रही।
– केशव मोहन पाण्डेय