66 Views‘हिलोर’ मन के भीतर बसे हुए बचपन के गाँव के कान उमेठ कहती है कि ‘कहो तो! सादे- शफ़्फ़ाफ़ आवरण में छुपे तुम अपने कुटिल-कुचाली अंतरतम को चीन्हते हो ? पहचानते हो क्या सदियों पुरानी परम्परा के चोले में साँस ले रहे, आजी-नानी,बाबा-भाई, पिता-ताऊ के झुर्रियों में बसे उस कुत्सित रीति -रिवाज को जो आज भी कई -कई किशोरियों के कोमल पैरों की जंजीर और सुकोमल सपनों पर साँकल बन कसा है ? इस कहानी संग्रह ‘हिलोर ‘ की पच्चीस अपरूप आपबीती पूर्वी उत्तरप्रदेश के फैजाबाद जिले के तारुन…
Read MoreTag: डॉ सुमन सिंह
मरून कलर सड़िया
110 Views” काल्ह अम्मा आवे वाली हईं , तनी स्कूले जात क नम्बर लगा दीहा बचवा।” किचन से आइल आवाज़ के माधुरी से अतुल भांप गइलन की अम्मा माने नानी।अतुल के जिनगी में दू गो अम्मा रहलीं ।पहिलकी दादी जिनके कायदन त आजी कहे के सिखवल गइल रहे बाकिर बूढ़ा खुद के आजी कहे न दें काहें की अतुल के पैदाइस के समय ऊ एतना टांठ अऊर जवान रहलीं की उनके केहू दादी भा आजी कहे त मारे धउरें आ दुसरकी नानी जे नानी कहले नाराज हो जाए आ धमकावत…
Read Moreबाढ़ में बनारस
99 Views ‘काहें भीड़ लगल हे गुरु ?कवनो कांड हो गयल हौ का भाय…?” ऑटो में बैठे एक सज्जन ने हाल जानना चाहा। “अरे नाहीं कुल बाढ़ देखे आयल होइहन,ससुर खलिहर लोगन के कउनो काम -धाम त हौ ना।’ऑटो वाले ने गुटखा थूक मुंह पोछते कहा। “तनी रोकता त हमहूँ देखतीं ए बचवा कि गंगा जी केतना बढ़ियायल हईं।”एक बुजुर्ग महिला ने हुलस कर ऑटो वाले को तर्जनी से कोंचा। ” अच्छा! त तोहरे कहले बिच्चे सड़क पर हम गाड़ी रोक दिंही अउर पुलिस क मार -डंडा सहीं। आंय…।” ऑटो…
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