गजल

117 Views हमने अपनी चाय बनाई दिल को हमने साज़ किया इक मीठी सी धुन से हमने सुब्ह का फिर आगाज़ किया सुबह टहलने निकले देखा पूरी घाटी जाग उठी हुई गुफ्तगू फिर किरणों से ऐसे दिन आबाद किया कुछ अरसे से मन भी जैसे अपने में डूबा सा था इक्का दुक्का लोग खड़े थे लोगों से संवाद किया आवाजाही इस जीवन में बेशक बहुत जरूरी है बहुत देर तक कहीं ठहरना दिल ने कब स्वीकार किया कुदरत सदा यही कहती है देखो जितना देख सको दो पल के इस…

Read More

गजल

161 Views ज़माने का दस्तूर क्या बन गया है शहर का शहर बावरा बन गया है कभी उसके तेवर में तुर्शी थी कितनी वो कवि था मगर मसख़रा बन गया है उसे तोल पाना असंभव था बेहद मगर आजकल बटखरा बन गया है असहमत हैं जो मुल्क के हुक्मराँ से वतन उनका ही कटघरा बन गया है ये बिजली ये बादल ये घुड़की ये आंसू सियासत का यह पैंतरा बन गया है दबे उसके भीतर हैं सुधियों के पिंजर वो जीते जी ही मक़बरा बन गया है छुपाए हुए राज़…

Read More