बारिश

125 Views सुबह सुबह निकले हैं घर से बारिश हो रही अमृत बूंदें बरसें झर झर से बारिश हो रही। गहरे बादल का वितान है अंबर में हर ओर कहीं नहीं दिखता सूरज का कौन-सा अपना छोर चल रहे रवि भी डर डर के बारिश हो रही। चक्षु-धरा हैं तृप्त हो रहे सुन जल-तरंग का राग विरही मन में धधक उठती है पुनीत प्रेम की आग फिर भी निकलेंगे जोड़े घर से बारिश हो रही। – केशव मोहन पाण्डेय

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प्रेम-वृक्ष

98 Views इस मौसम में जब कि सावनी फुहार लगना चाहिए तीखी खिली धूप में भी मैं याद करता हूँ तुम्हें कि उन दिनों कैसे हम बचकर चलते थे बरसाती पानी की छपाक से और यह जानते हुए भी कि नहीं रुकेगी एक बूंद भी तुम्हारे दुपट्टे से फिर भी अच्छा लगता था एक साथ ओढ़ना। अब, जबकि सफेद हो गए हैं कनपट्टी के बाल चढ़ गया है आँखों पर दूर दृष्टि दोष का चश्मा कई छिद्र करवाने पड़े हैं बेल्ट के अंतिम छोर की ओर और एक लंबी साँस…

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सावन

130 Views ई सावन के झीसी जइसे केहू दाबत होखे परफ्यूम के सीसी आ करत होखे जुगत मँहकावे के धरती रानी के गतर-गतर। ई मातल बादर जइसे मखमल चादर ओढ़ले होखे धरती धानी धन बचावे के आ ई देख के कवनो रागिनी मचलत होखे गावे के गीत कवनो प्रेम के। जेठ के झनकल माटी तुरि के सगरो परिपाटी तैयार होखे मिलन के बेकल आसमान से दूर करे ला बरिसन के बिरह व्यथा बनि के सद्यःस्नात। जब प्रकृति बा अइसन तैयार तब मनई काहें बइठे मन मारि? सावन में त धूर…

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हिलोर एकनजर में

66 Views‘हिलोर’ मन के भीतर बसे हुए बचपन के गाँव के कान उमेठ कहती है कि ‘कहो तो! सादे- शफ़्फ़ाफ़ आवरण में छुपे तुम अपने कुटिल-कुचाली अंतरतम को चीन्हते हो ? पहचानते हो क्या सदियों पुरानी परम्परा के चोले में साँस ले रहे, आजी-नानी,बाबा-भाई, पिता-ताऊ के झुर्रियों में बसे उस कुत्सित रीति -रिवाज को जो आज भी कई -कई किशोरियों के कोमल पैरों की जंजीर और सुकोमल सपनों पर साँकल बन कसा है ? इस कहानी संग्रह ‘हिलोर ‘ की पच्चीस अपरूप आपबीती पूर्वी उत्तरप्रदेश के फैजाबाद जिले के तारुन…

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मरून कलर सड़िया

110 Views” काल्ह अम्मा आवे वाली हईं , तनी स्कूले जात क नम्बर लगा दीहा बचवा।” किचन से आइल आवाज़ के माधुरी से अतुल भांप गइलन की अम्मा माने नानी।अतुल के जिनगी में दू गो अम्मा रहलीं ।पहिलकी दादी जिनके कायदन त आजी कहे के सिखवल गइल रहे बाकिर बूढ़ा खुद के आजी कहे न दें काहें की अतुल के पैदाइस के समय ऊ एतना टांठ अऊर जवान रहलीं की उनके केहू दादी भा आजी कहे त मारे धउरें आ दुसरकी नानी जे नानी कहले नाराज हो जाए आ धमकावत…

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बाढ़ में बनारस

99 Views ‘काहें भीड़ लगल हे गुरु ?कवनो कांड हो गयल हौ का भाय…?” ऑटो में बैठे एक सज्जन ने हाल जानना चाहा। “अरे नाहीं कुल बाढ़ देखे आयल होइहन,ससुर खलिहर लोगन के कउनो काम -धाम त हौ ना।’ऑटो वाले ने गुटखा थूक मुंह पोछते कहा। “तनी रोकता त हमहूँ देखतीं ए बचवा कि गंगा जी केतना बढ़ियायल हईं।”एक बुजुर्ग महिला ने हुलस कर ऑटो वाले को तर्जनी से कोंचा। ” अच्छा! त तोहरे कहले बिच्चे सड़क पर हम गाड़ी रोक दिंही अउर पुलिस क मार -डंडा सहीं। आंय…।” ऑटो…

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गजल

117 Views हमने अपनी चाय बनाई दिल को हमने साज़ किया इक मीठी सी धुन से हमने सुब्ह का फिर आगाज़ किया सुबह टहलने निकले देखा पूरी घाटी जाग उठी हुई गुफ्तगू फिर किरणों से ऐसे दिन आबाद किया कुछ अरसे से मन भी जैसे अपने में डूबा सा था इक्का दुक्का लोग खड़े थे लोगों से संवाद किया आवाजाही इस जीवन में बेशक बहुत जरूरी है बहुत देर तक कहीं ठहरना दिल ने कब स्वीकार किया कुदरत सदा यही कहती है देखो जितना देख सको दो पल के इस…

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गजल

161 Views ज़माने का दस्तूर क्या बन गया है शहर का शहर बावरा बन गया है कभी उसके तेवर में तुर्शी थी कितनी वो कवि था मगर मसख़रा बन गया है उसे तोल पाना असंभव था बेहद मगर आजकल बटखरा बन गया है असहमत हैं जो मुल्क के हुक्मराँ से वतन उनका ही कटघरा बन गया है ये बिजली ये बादल ये घुड़की ये आंसू सियासत का यह पैंतरा बन गया है दबे उसके भीतर हैं सुधियों के पिंजर वो जीते जी ही मक़बरा बन गया है छुपाए हुए राज़…

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मंगरुआ के मौसी

100 Viewsमंगरुआ के मौसी मुँहझौसी ! कतों मुँह खोल गइल। ढेरे कुछ नु बोल गइल।   नाड़ा के बाति भाड़ा के बाति उजरकी कोठी आ कलफ लागल कुरता दूनों के तोल गइल। ढेरे कुछ नु बोल गइल।   कहाँ, के खोलल टटोलल ! कहाँ कतना मोल भइल। ढेरे कुछ नु बोल गइल।   आजु मेजबान फेरु बेजुबान घर घर घरनी के अदला-बदली तक टटोल गइल। ढेरे कुछ नु बोल गइल।   कंकरीट के जंगल में लहलहात कैक्टस लेवरन अस साटल मुसुकी से परम्परा के सुनुगत बोरसी तक अचके झकोल गइल।…

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कब्रिस्तान के बगल वाली लड़की

55 Viewsकब्रिस्तान के बगल वाली लड़की चुलबुली सी प्यारी सी खनकती हँसी के संग इधर – उधर तितलियों सी मंडराती सबको हंसाती , हंसती किलोलें भरती हंसिनी सी .   वहां उसका होना रोज एक नयी  कहानी की भूमिका गढ़ जाता है दे जाता है कथानक किसी उपन्यासकार को भावभूमि किसी कवि को.   वो लड़की किसी दिन जब होती है उदास रुक जाता पत्तियों का हिलना – डुलना पक्षियों का कलरव लहरों का तरंगायन पास वाले तालाब में भी .   कभी जब ओ लड़की रोती सुबह सारी पगडंडी…

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