मुनक्का मौर्या ‘मृदुल’ की कविताओं में जीवन की झलक

अपनी बहन, मुनक्का मौर्य ‘मृदुल’, के काव्य संग्रह पर आलेख लिखना मेरे लिए एक व्यक्तिगत और भावनात्मक अनुभव है। मुनक्का जी के साहित्यिक सफर का गवाह बनना और उनकी रचनाओं की गहराई को समझना, मेरे लिए एक अनमोल अनुभव रहा है। उन्होंने जिस तरह से अपने जीवन के अनुभवों और समाज की वास्तविकताओं को कविताओं के माध्यम से व्यक्त किया है, वह प्रशंसनीय है।

कविता उनके लिए केवल एक माध्यम नहीं है, बल्कि यह उनके जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। अपने दिन-प्रतिदिन के घरेलू कामों के बीच भी, उनके मन में हमेशा शब्दों की धारा बहती रहती थी। यह धारा धीरे-धीरे उनके विचारों और भावनाओं को आकार देती रही, और अंततः यह एक समृद्ध काव्य संग्रह के रूप में हमारे समक्ष आई है।

उनके संग्रह में तीन प्रमुख विषय उभर कर आते हैं: देशभक्ति, नारी सशक्तिकरण और वंचित समुदाय की पीड़ा। यह विषय न केवल उनके व्यक्तिगत अनुभवों से जुड़े हैं, बल्कि समाज की एक गहरी समझ का भी प्रतीक हैं। उन्होंने मातृभूमि के प्रति अपने प्रेम और समर्पण को बेहद भावपूर्ण तरीके से व्यक्त किया है। साथ ही, उन्होंने समाज की आधी आबादी, अर्थात् नारी शक्ति, के संघर्ष और उनकी ताकत को भी अपने शब्दों में पिरोया है। यह कविताएँ नारी सशक्तिकरण के संदेश को आगे बढ़ाती हैं, जो आज के समय में अत्यंत प्रासंगिक हैं।

 

एक और महत्वपूर्ण पहलू जो उनकी कविताओं में देखने को मिलता है, वह है वंचित और उपेक्षित समुदायों की पीड़ा। मुनक्का जी ने इन समुदायों के संघर्ष और उनके हक की लड़ाई को बेहद संवेदनशीलता से अपने काव्य में अभिव्यक्त किया है। उनकी कविताएँ इन आवाज़ों को सामने लाने का प्रयास करती हैं, जो अक्सर समाज में अनसुनी रह जाती हैं।

मुनक्का जी के इस काव्य यात्रा में उनके परिवार का विशेष योगदान रहा है, और इसमें कोई संदेह नहीं कि उनके जेठ, आदरणीय रामवृक्ष प्रसाद जी का मार्गदर्शन और प्रोत्साहन उनके लेखन में अहम भूमिका निभाता है। चंदौली के माटी गाँव स्थित आदर्श इंटर कॉलेज में हिंदी के प्रवक्ता रहे रामवृक्ष जी ने हमेशा उन्हें प्रेरित किया और उनकी साहित्यिक यात्रा को सही दिशा देने में मदद की।

मुनक्का जी की कविताएँ न केवल उनकी भावनाओं का प्रतिबिंब हैं, बल्कि वे हमारे समाज के विभिन्न पहलुओं की भी व्याख्या करती हैं। उनकी लेखनी हमें आत्मचिंतन की ओर प्रेरित करती है, और समाज के प्रति हमारी जिम्मेदारियों का बोध कराती है। उनके इस काव्य संग्रह को पढ़कर पाठक एक नई दृष्टि से जीवन और समाज को देख सकेंगे।

यह काव्य संग्रह मुनक्का जी की उन भावनाओं का प्रतिबिंब है, जो उन्होंने अपने जीवन के अनुभवों से प्राप्त की हैं। यह संग्रह उन सभी लोगों को समर्पित है, जिन्होंने उनके लेखन को समझा और उन्हें प्रोत्साहित किया। मुझे विश्वास है कि पाठकों को यह संग्रह प्रेरित करेगा और उनमें एक गहरी संवेदनशीलता जगाएगा।

– विजय विनीत

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