मरून कलर सड़िया

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” काल्ह अम्मा आवे वाली हईं , तनी स्कूले जात क नम्बर लगा दीहा बचवा।” किचन से आइल आवाज़ के माधुरी से अतुल भांप गइलन की अम्मा माने नानी।अतुल के जिनगी में दू गो अम्मा रहलीं ।पहिलकी दादी जिनके कायदन त आजी कहे के सिखवल गइल रहे बाकिर बूढ़ा खुद के आजी कहे न दें काहें की अतुल के पैदाइस के समय ऊ एतना टांठ अऊर जवान रहलीं की उनके केहू दादी भा आजी कहे त मारे धउरें आ दुसरकी नानी जे नानी कहले नाराज हो जाए आ धमकावत कहे कि-‘ ए बचवा ! जब अपने आजी के दादी ना कहेला त हमके काहें नानी कहबा ,हमहूँ के अम्मा कहा।’अतुल एह कुल से खीझ के अपने मम्मी से सिकायत करें – ‘ ये क्या बात है मम्मी ! दादी -नानी को इंसान दादी -नानी नहीं कहेगा तो किसको कहेगा ? ये हमारे घर की बुढ़िया लोग अपने को विश्व सुंदरियाँ समझती हैं।इतना घमण्ड तो मेरे कॉलेज की लड़कियों को भी अपनी सुंदरता पर नहीं है जितना इन लोगों को है।’ हालांकि ई कुल कहके अतुल भले अपने मम्मी के चिढावें बाकिर इनहन लोग क घरे आइल अतुल के नीको बहुत लगे।दुनु बूढ़ी लोग फैशनबाज जरूर रहलीं बाकिर गुनी-गिहिथिन भी बहुत रहलीं।जब ई लोग आवें त खूब तरह – तरह क पूड़ी – पकवान बनावें। गठरी-मोटरी में कई-कई किसिम क चीज -समान गंठीअवले आवें।जाए लगें त रुपिया -पइसा हाथ पर धय के असीसत-दुलारत जाएँ।वइसे त अतुल पलल-बढ़ल बनारसे सहर में रहलन बाकिर उनकर गाँव एतना नियरे रहे कि जब मन करे बाइक उठावें आ घंटा भर में पहुँच जाएँ।गाँव में बाबा-ताऊ लोग रहें आ लइकपने से अतुल के एतना माने की अतुल भाग-भाग के गाँवे पहुँचल रहें।ननिअउरे क भी इहे हाल रहे।मामी जाते अइसे अँकवार भरें की लगे की उनहीं के कोखे जनमल हउवन।मामा एतना गाँव-सिवान ,चट्टी -चौराहा घुमावें ,खिआवें -पिआवें की अतुल उहवाँ से लवटे क नाम न लें।अतुल क पापा बहुत गंभीर आ सख्त मिजाज रहलन।अतुल एकलौता लइका।सोचें कि ढेर-प्यार -मोहब्बत देखवले बिगड़ जइहन आ फिर कब्बो हाथ ना अइहन।एहर अतुलो भरसक कोसिस करें कि हाथ न आवें।एही कुल बच-बचाव में दुनु लोग में केतना अलगाव हो गइल ई ऊ लोग आज ले ना जान पाइल।मम्मी दुनू ओरी से संदेस वाहक के भूमिका में रहें त इनहन लोग के एक दूसरे से समनी-सामना करे क मौके ना मिले। नानी क आवल सुनके अतुल के नीको लगत रहे अऊर खराब भी।नानी उनहीं के कमरा में ठहरे वाली रहलीं आ ऐसे उनके प्राइवेसी पर बहुत बड़ा खतरा मंडरात रहल।ऊ बड़बड़ात अपने मम्मी के इँहा पहुँचलन-
” अब कौन सी बुढ़िया आ रही हैं ? “
मम्मी उनके एह हरकत पर क्रोध में चूरत डंटलीं -” ई का बदतमीजी ह ? अइसहीं बोलबा उनहन लोग के सामने।माथा खराब हो गइल ह का तोहार ? “
अतुल मम्मी के क्रोध से सहमत बात सम्हारत कहलन – ” अरे ! बूढ़ी ही तो कहा है,कोई गाली दी है कि आप नाराज हो रहे हो।अच्छा ! सॉरी !बताओ तो दादी अम्मा आ रही हैं कि नानी अम्मा ? बहुत कन्फ्यूजन है भाई।इनको दादी न कहो उनको नानी न कहो। तो पूछ्ना ही पड़ेगा न की कौन सी बुढ़िया। सॉरी -सॉरी ।आई मीन अम्मा ? जल्दी से बताओ मम्मी कि किस डॉक्टर के यहाँ नम्बर लगाना है।देर हो रही है मुझे।और हाँ ! अब स्कूल में नहीं हूँ मैं ,कॉलेज में चला गया हूँ।आप जब देखो तब कहते हो स्कूल जाते समय यह करना,स्कूल जाते समय वह करना। हंह।दोस्तों के सामने भी ऐसे ही बोलने लगते हो।” रिसीआइल मम्मी से बहुत मनवले, चिरौरी बिनती कइले के बाद पता लग पाइल की अम्मा मने नानी आवे वाली हईं आ उनके आर्थो के डाक्टर के देखावे के ह।
अतुल जब साँझी क घरे लवटलन त जानल-पहचानल खुसबू आ आवाज़ से घर गमकत-गूँजत रहे।नानी क औरा घर में दीपदीपात रहे।अतुल के देखते -‘ अरे हमार अतुआ रे ! केतना बड़ हो गइले बचवा !’ कह के ऊ अँकवारी भर लिहलीं।अपने संगे ले आइल कुल किसिम -किसिम क डब्बा-डिब्बी,गठरी-मोटरी में रखल पेड़ा-मिठाई निकाले लगलीं।नानी के अतुल क पसंद पता रहल आ अतुल के नानी के हाथ क बनावल मिठाई -पकवान।
अतुल आ नानी क इँहा तक ले त मेल-मिलाप बड़ा मीठ रहे बाकिर जब राती क झोरा-झंडा लिहले नानी उनके कमरा में घुसलीं त उनकर मन तिताए लगल।नानी खातिर अपने कमरा में एक ओरी जगह बनावत अतुल अइसन रोआइन मुँह बनवले रहलन की नानी टोक दिहलीं – ” ए बचवा काहें माहूर नियन मुँह बनवले हउवा हो ? ढेर दिन ना रहे के ह हमके।लइकी के घरे ढेर दिन रहहूँ के ना चाही।इहे महीना छः महीना में जीव आनमान हो जाई त घरे चल जाइब।ठेहुनवा तनी दुखात रहल ह त सोचलीं ह की डागदर के देखा लिहीं।” नानी क बात अतुल के करेजा में जाके धकक से लग गइल।ऊ मुँह फाड़के उनके उजबुक नियन देखे लगलन।नानी पहिले त उनके एह ब्यवहार पर चकित भइलीं फिर करकस आवाज में टोकलीं – ” काहें चिहइले नियन मुँहवा लगत ह तोहार ? अरे , जल्दी से बिछौना बिछावा।मच्छरदनियों लगाय दिहा।दिन भर क थकल-खेदाइल हईं। बड़ा जोर क उँघाई लगत ह। “
अतुल जल्दी -जल्दी बर-ब्यवस्था कर के छुट्टी पावे क सोचत रहलन बाकिर नानी अबहीं उनके छोड़े के मूड में ना रहलीं। एहर-ओहर क बात पूछत -बतियावत लगे कि बिहान कर दीहन।आ एहर अतुल क मूड एकदम्मे ऑफ रहल।आज उनकर बात नीलू से ना हो पाइल रहे।बार -बार नीलू क फोन आवे अऊर बार – बार ऊ काट दें।नानी उनकर इकुल हरकत बड़ा देर से देखत रहलीं।धीरे से कहलीं – ‘ फोनवा उठाय ला,बतिया ला ओनसे। केहू खासे न होई एतना रात क फोन करे वाला।जा हम केहू से कहब ना।तोहरे मम्मी से भी ना ?’ नानी के एह फुसफुसाहट के सुन के अतुल खुसी से उछल गइलन – ” पक्का न अम्मा ? किसी से नहीं कहेंगी न आप ? “
नानी क झुर्री भरल आँखि मुस्किया उठल – ” ना ..ना कहब हो हमार लाल। जा बतिया ला ,हमके ऊँघाई लगत ह अब।”
अतुल ओह दिन से नानी क एतना सेवा-टहल करे लगलन की उनके मम्मी के अचरज होवे लगल। डॉक्टर से लेके मंदिर-मॉल घुमावे में भी अब पहिले नियन असकत ना करें। छुपछुप के सिगरेट पीए वाला अतुल के पकड़ लिहले के बाद जब एक दिन नानी ई कह के बरजलीं की ‘ ए बचवा ! घी -दूध खाए के उमिर में काहें करेजा फूँकत हउवा हो। छोड़ दा अइसन कुल नास में जाए वाला नसा।’ त अतुल नानी के पंजरे रहे भर में कब्बो सिगरेट के बारे में सोचबो ना करें।
एक दिन त ऊ नानी के ई बता के अचंभा में डाल दिहलन की उनके इम्प्रेस करे बदे नीलू आजकल भोजपुरी सीखत हईं।नानी हँसत पुछलीं – ” केसे ? तोहसे ? तू त खुदे भोजपुरी ना बोलेला।”
अतुल नानी के कान में भेद बतावत कहलन – ” नहीं।भोजपुरी फ़िल्म देख के और गाना सुनके भोजपुरी सीख रही है।”
नानी एकदम्मे खिसिया गइलीं – ” तब त बिगड़ जाई लइकी।जा ए बचवा ! तोहुँ लोग न सीधा डहरी ना चलबा, टेढ़े चलबा।भोजपुरी सीखे के ह त बियह लिआवा ,हमहीं सिखाय देहीं।”
अतुल हँसत कहलन – ” अम्मा ! मम्मी तोहरे नियन अच्छी आ मॉर्डन ना हईं।हम बियाह करे के कहब ऊ हमके जिबह कर दीहन।बतावा तोहार एकलौता नाती खलास हो जाई।” अतुल पहिली बार नानी से भोजपुरी में बात करत रहलन।उनके बोली के मिठास में पोरे -पोरे भोराइल नानी कहलीं – ” ए भोलेनाथ ! ई देखीं हमरे लाल के।ए बचवा ! केतना नीक लगत ह तोहरे मुँह से आपन बोली बानी।हम त जी-जुड़ा गइलीं हो। ए बचवा ! अब तू देखा हम कइसे तोहरे बियाह क बात चलाईला आ देखीला की केकर हिम्मत ह मना करे क।तोहर माई-बाबू क हिम्मत ना ह हमके मना करे के।जनला की ना ? ” नानी के रुआब आ सदभाव से कमरा उजियार हो गइल रहे।
अतुल ग़लबहियाँ डारत कहलन – ” आप दुनिया की बेस्ट नानी हो।मुझे पता है आप सबको मना लेंगी।एक गाना सुनोगी आप ? बहुत पापुलर है आजकल ? “
नानी क अनुमति मिलते अतुल गाना बजवलन – ” हटे हटवले ना हटे नजरिया हो,जान मारे जान हो मरून कलर सड़िया…।” गाना सुनत आ वीडियो देखत नानी क गोर-गार मुँह गुलाबी हो गइल जवने के देख के अतुल जोर-जोर से हँसे लगल रहलन। कमरा में बजत गाना के आवाज़ से अतुल क मम्मी हाथ क काम छोड़ के दउड़ल अइलीं।
मारे घबरहट के पसीना-पसीना हो गइल रहलीं।अवते मोबाइल छीन के गाना बंद कइलीं – ” ई का कुल सुनत -सुनावत हउवा जा।एकदम्मे तोके डर ना लगत ह अत्तू ! पापा हउवन अभी घर में।अम्मा !तोहूँ बुढ़वती में सठिया गइल हऊ।कइसन कुल फूहर-पातर गाना सुनत हऊ लइकन संगे लइका बनके ? कहवाँ त रोकबू-टोकबू , एकदम्मे बिगाड़ के रख देले हऊ इनके।” अतुल क मम्मी जइसे बोलत बड़बड़ात अइलीं ओइसहीं उधियात चलियो गइलीं। पति के लंच बॉक्स थमावत उनकर देह थरथर काँपत रहे।भगवान के मनावत ऊ इहे सोचत रहलीं की कहीं अतुल क पापा एह गाना के सुन न लेले होएं।
ओह दिन माई-बेटी में भर दुपहरिया बात भइल।अम्मा समझावत कहलीं – ” ए बच्ची ! दुनिया -जहान बदल गइल ह त अब हमहनो के बदले के पड़ी।हमासुमा क बात अलग रहे,जुग-जमाना दूसर रहे।अदिमी नान्हे पर बियह-दान के आ गइल रहे।कुछ गलती हो जाय त सास झोंटा कबार के मुअली क मार मारें।जूठकांठ खा के फाटल – पेवन पहिर के अदिमी लइका-लइकी जिअवलन। कुल जवानी चूल्हा झोंकत बीत गइल।बूढ़ -ठूढ़ भइलन त घरे से बहरे निकरे के मिले तीरथ-बरत के नांव पर।बाकिर आजकल क लइकी -पतोह के देख ला।अवते मोटरसाइकिल चढ़ के बाजारे जाए बदे जिदीआत जात हईं।घरजनवा मैगी, चाउमीन बनत -खात ह।गाँव क बेटा-पतोह अब सहरियो में रहे वालीन के फेल कर दीहले हईं।मुँहखोल के जयमाल होत ह ,भोजभात होत ह।के केसे लजात -डेरात ह।सास -ननद तानिको कुछ बोल दें त अलगा होवे बदे छछने लगत हईं कुल। ए बच्ची ! आपन लाज अब अपने हाथे ह।हमहन के उमिर क बूढ़ा-बूढ़ी इहे मनावत राम-राम करत हउवन की माटी पार घाट लग जाए, जियते जिनगी जहर नत हो जाए।तू लोग त सहरे में रहे वाला,हमहन से ढेर पढ़ल -लिखल, समझदार।एक्के गो लइका ह तोहरे , दुलार-ढांप के रखा।कब्बो अपने मन क बात तोहसे कही त नराज मत होइहा।बियाह -सादी अपने मन से कहे के करी त लोकलाज मत जोगइहा।”
अपने माई क इकुल बात सुनत बच्ची एकदम सन्न रहलीं।उनके भरोसे ना होय की ई उनही क माई हईं।
अकबकात कहलीं – ” एतना बड़-बड़ बात करत हऊ की लगते ना ह की तू हमरे अम्मा हऊ।कवनों लइका से बात करत देख के लगा हमहन के अँगना में दउरा-दउरा के मारे ।याद ह तोहके, जब कुसुमी क चिट्ठिया पकड़ाइल रहे त केतना मरले रहलू ? बेचारी हफ्ताभर तक ठीक से चल फिर ना पावे।आनन -फानन में अइसन घरे बियह देलू लोग की बेचारी आज ले भोगत हे। हमहन के बेरी त एकदम्मे जरती आग रहलू । लोकलाज जोगावत तोहार उमिर पाक गइल। अइसन का हो गइल की एतना मॉर्डन हो गइलू अम्मा ? ” बच्ची मुस्कियात , अम्मा ओरी देखलीं। अम्मा आपन चश्मा क लेंस अपने अँचरा से पोछत ,भरल आँख क आँस जबरी छिपावे क कोसिस करत कहलीं – ” ए बाची ! हमार उमिर त पाक गइल बाकिर पछतावा ना मेटल।तू ओइसन कवनों गलती नत कारीहा।एक्के गो लइका ह ओके छोप-छाप के रखिहा।ओकरे खुसी में तोहर खुसी ह हो बच्ची।पाहुनो के समझइहा।बियाह-दान करे से पहिले ओसे पूछ लिहा लोग की केहू पसंद त ना ह।”
बच्ची चिहात पुछलीं – ” केहूके पसन्द कइले ह का ? तोहके बतवले ह ? “
अम्मा कुछ बोललीं ना बस मुस्किया भर दिहलीं।सीधपल्ला के साड़ी क किनारी ठीक करत कहलीं – ” ओइसे मरून कलर साड़िया वाला गाना तोहुँ सुन सकेलू, हम्मे त तानिको बाऊर ना लगल।हमके त बड़ा नीक लगेगा लइकन संगे बोले-बतियावे में,लइका बन जाए में।भले केहू तीत-बीख बोले।ताना-मेहना मारे।” अम्मा ठुमकत-ठुनकत उठके संझाबाती करे चल गइलीं आ बच्ची अचरज से भरल उनके देखते रह गइलीं।
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  • डॉ  सुमन सिंह

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