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मंगरुआ के मौसी
मुँहझौसी !
कतों मुँह खोल गइल।
ढेरे कुछ नु बोल गइल।
नाड़ा के बाति
भाड़ा के बाति
उजरकी कोठी आ कलफ लागल कुरता
दूनों के तोल गइल।
ढेरे कुछ नु बोल गइल।
कहाँ, के खोलल
टटोलल !
कहाँ कतना मोल भइल।
ढेरे कुछ नु बोल गइल।
आजु मेजबान
फेरु बेजुबान
घर घर घरनी के
अदला-बदली तक टटोल गइल।
ढेरे कुछ नु बोल गइल।
कंकरीट के जंगल में
लहलहात कैक्टस
लेवरन अस साटल मुसुकी से
परम्परा के सुनुगत बोरसी तक
अचके झकोल गइल।
ढेरे कुछ नु बोल गइल।
खबर आइल
त तड़को लागल
बड़का साहूकार नेता अभिनेता के
बड़की कुरसी खातिर
फुटहिये नु ढ़ोल भइल
ढेरे कुछ नु बोल गइल।
- जयशंकर प्रसाद द्विवेदी