‘ऐसा क्यों’ आत्ममंथन की प्रेरक दस्तक

‘ऐसा क्यों’ आत्ममंथन की प्रेरक दस्तक
   – रितू मोहन

‘ऐसा क्यों’ डॉ कृष्ण कुमार पांडेय का एक ऐसा लघु-लेख संग्रह है, जो केवल प्रश्न नहीं उठाता, बल्कि उन प्रश्नों की जड़ों में जाकर हमें आत्ममंथन के लिए विवश करता है। यह कृति किसी दार्शनिक वाद या केवल विचारों की गूंज नहीं है, बल्कि वह संवेदनशील और सजग लेखनी है जो समाज, संस्कृति, धर्म, परंपरा, नैतिकता और मनुष्यता को लेकर गंभीर चिंतन प्रस्तुत करती है। लेखक ने व्यक्तिगत अनुभवों, ऐतिहासिक दृष्टांतों, शास्त्रीय प्रमाणों और सामाजिक यथार्थों को आधार बनाकर छोटे-छोटे लेखों के रूप में आज के बिखरते सामाजिक मूल्यों की पड़ताल की है।
इस संग्रह की प्रस्तावना ही इसकी वैचारिक गंभीरता का परिचय देती है, जिसमें लेखक भारतीय मनीषियों की सत्य की खोज के प्रति तपस्वी समर्पण का स्मरण कराते हुए तथागत बुद्ध के जीवन को उदाहरण के रूप में प्रस्तुत करता है। गोरखपुर क्षेत्र की पवित्र माटी से उपजे बुद्ध का ‘मध्यम मार्ग’ आज भी प्रासंगिक है — यह सन्देश लेखक अत्यंत प्रभावशाली ढंग से देते हैं। ‘सम्यक् जीवन’ का यह सूत्र वस्तुतः पूरे संग्रह का अंतर्धार है, जो हमें संतुलन, संयम और विवेक के साथ जीने की प्रेरणा देता है।
भारतीय साहित्य की ऐतिहासिक यात्रा पर भी लेखक की दृष्टि अत्यंत सटीक है। वाल्मीकि की रामायण से लेकर वेदव्यास के महाभारत और श्रीमद्भगवद्गीता तक, लेखक दर्शाते हैं कि साहित्य समाज का केवल दर्पण नहीं, बल्कि दिशा भी है। प्रेमचन्द की यथार्थवादी लेखनी को उदाहरण स्वरूप प्रस्तुत करते हुए लेखक साहित्य के माध्यम से समाज में परिवर्तन की शक्ति को प्रमाणित करते हैं। किंतु ‘ऐसा क्यों’ केवल अतीत का गौरवगान नहीं है, यह वर्तमान की जटिलताओं और विडम्बनाओं की भी निष्पक्ष पड़ताल करता है। लेखक आज के भारतीय समाज के पश्चिमी प्रभाव से विकृत हो रहे मूल्यों की ओर स्पष्ट संकेत करते हैं — जैसे कि पारिवारिक विघटन, स्त्री-पुरुष संबंधों में संतुलन की कमी, तथा व्यक्तिगत अधिकारों के नाम पर सामाजिक दायित्वों की उपेक्षा। वह यथार्थ को कड़ाई से देखते हैं, किन्तु उसकी आलोचना केवल नकारात्मक दृष्टि से नहीं, बल्कि सुधार की चाह और चेतना के साथ करते हैं।
लेखक ने अपने देखे, सुने और पढ़े गए घटनाओं को एक अत्यंत व्यावहारिक, संतुलित और सहज भाषा में प्रस्तुत किया है। उनके लेख केवल ‘उपदेश’ नहीं देते, वे हमें सोचने के लिए जगह देते हैं। ‘क्या उचित है, क्या अनुचित?’ यह प्रश्न हर लेख के अंत में अनकहा रूप से खड़ा रहता है, जो पाठक को आत्मनिरीक्षण की ओर ले जाता है। भाषा सरल, प्रवाहमयी और भावप्रवण है। शैली संवादात्मक और आलोचनात्मक है, जो पाठक से सीधा संवाद करती है। विषयवस्तु अत्यंत विविध है – धर्म, दर्शन, समाज, स्त्री-पुरुष संबंध, पारिवारिक मूल्य, राजनीति, शिक्षा आदि। प्रत्येक लेख एक स्वतंत्र विचारधारा को लेकर चलता है, किन्तु सभी मिलकर एक समग्र बौद्धिक, नैतिक और आध्यात्मिक चेतना का निर्माण करते हैं।
निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि ‘ऐसा क्यों’ केवल लेखों का संग्रह नहीं, बल्कि एक चिंतन यात्रा है, जो हमें हमारे मूल्यों, परंपराओं और जीवन-दृष्टियों पर पुनर्विचार के लिए प्रेरित करती है। यह कृति उस पाठक के लिए विशेष रूप से उपयोगी है जो समाज को बदलने से पहले स्वयं को समझना और बदलना चाहता है। यह संग्रह अपने भीतर न केवल उत्तर, बल्कि उन आवश्यक प्रश्नों को भी समेटे हुए है जिन्हें पूछना आज के समाज में अधिक जरूरी हो गया है। यह पुस्तक एक दर्पण है — जिसमें हम स्वयं को देख सकते हैं, परख सकते हैं और सुधार सकते हैं।

पुस्तक : ऐसा क्यों
लेखक ; डॉ कृष्ण कुमार पाण्डेय
प्रकाशक : देशज प्रकाशन (सर्व भाषा ट्रस्ट), नई दिल्ली
मूल्य : 160

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